Tenant Rights – घर से दूर जाकर किराए पर रहना आजकल के महंगाई के दौर में कोई आसान काम नहीं है। महीने के आखिर में किराया देना और ऊपर से मकान मालिक द्वारा अचानक किराया बढ़ा देना, यह सब किराएदारों के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय बन जाता है। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि मकान मालिक एक साल में कितना किराया बढ़ा सकता है, ताकि किराएदार अपनी योजना सही तरीके से बना सकें और कोई अनावश्यक झंझट में न फंसे। तो चलिए, इस लेख में हम किराया बढ़ोतरी के नियमों के बारे में विस्तार से बात करते हैं, खासकर उन नियमों के बारे में जो विभिन्न राज्यों में लागू हैं।
भारत में किराएदारी कानून: राज्यों के अनुसार नियम
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि भारत के अलग-अलग राज्यों में किराएदार और मकान मालिक के अधिकार और कर्तव्य को लेकर अलग-अलग कानून बने हुए हैं। कुछ राज्यों में किरायेदारी कानून काफी कड़े हैं जो मकान मालिक की मनमर्जी से ज्यादा किराया बढ़ाने पर रोक लगाते हैं। खासकर दिल्ली, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में ये नियम अलग-अलग हैं। इन राज्यों के नियम जानना किराएदारों के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि इससे उन्हें पता चलता है कि उनका हक क्या है और उन्हें किस हद तक किराया देना होगा।
दिल्ली में किराया बढ़ोतरी के नियम
दिल्ली में 2009 का रेंट कंट्रोल एक्ट लागू है, जिसके अनुसार मकान मालिक एक साल में किराया केवल 7 प्रतिशत तक ही बढ़ा सकता है। यानी अगर आप लंबे समय से उसी जगह किराएदार हैं, तो मकान मालिक आपकी सहमति के बिना किराया 7 प्रतिशत से ज्यादा नहीं बढ़ा सकता। अगर मकान खाली हो जाता है, तो मकान मालिक को नए किराएदार से किराया बढ़ाने का अधिकार मिलता है। दिल्ली में छात्रावास, बोर्डिंग हाउस या बेडिंग स्पेस के लिए किराया सिर्फ साल में एक बार बढ़ाया जा सकता है। यह नियम किराएदारों को अनावश्यक किराया बढ़ोतरी से बचाने के लिए बनाए गए हैं।
उत्तर प्रदेश का किरायेदारी कानून और किराया बढ़ाने के नियम
अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश के किरायेदारी कानून की। यूपी में आवासीय भवनों के किराए में मकान मालिक सालाना 5 प्रतिशत तक किराया बढ़ा सकता है। अगर मकान गैर आवासीय है, तो किराया 7 प्रतिशत तक बढ़ाने की अनुमति है। किराया बढ़ोतरी की गणना यहां चक्रवृद्धि आधार पर होती है, यानी पिछली बढ़ोतरी के ऊपर ही नई बढ़ोतरी जोड़ी जाती है। अगर किराएदार दो महीने तक किराया नहीं देता, तो मकान मालिक उसे मकान खाली करने के लिए नोटिस दे सकता है। यूपी में नगरीय किराएदारी विनियमन अध्यादेश-2021 भी लागू है, जो किराएदार और मकान मालिक दोनों के अधिकारों की रक्षा करता है।
महाराष्ट्र में किराया नियंत्रण अधिनियम के तहत नियम
महाराष्ट्र में साल 2000 का किराया नियंत्रण अधिनियम लागू है, जिसके तहत मकान मालिक सालाना 4 प्रतिशत तक किराया बढ़ा सकता है। इसके अलावा मकान की मरम्मत या रख-रखाव का खर्चा भी मकान मालिक किराए में शामिल कर सकता है, लेकिन ये बढ़ोतरी निर्माण कार्य की लागत की 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। साथ ही, अगर टैक्स में कोई बढ़ोतरी होती है, तो मकान मालिक किराया उस टैक्स बढ़ोतरी के अनुरूप बढ़ा सकता है, लेकिन टैक्स से ज्यादा नहीं। यह नियम मकान मालिकों को भी फायदा पहुंचाते हैं ताकि वे मकान की देखभाल कर सकें, और किराएदारों को भी अनावश्यक किराया बढ़ोतरी से बचाते हैं।
किराएदारों और मकान मालिकों के अधिकार और जिम्मेदारियां
यह सब जानने के बाद किराएदारों को यह समझना चाहिए कि किराया बढ़ाने के नियम उनके लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं। अगर कोई मकान मालिक मनमानी किराया बढ़ोतरी करता है, तो किराएदार अपने स्थानीय किरायेदारी कार्यालय या अदालत से शिकायत कर सकते हैं। इसके अलावा, किराएदार को हमेशा किराए के अनुबंध को ध्यान से पढ़ना चाहिए और उसमें लिखे नियमों का पालन करना चाहिए। मकान मालिक और किराएदार के बीच अच्छा संवाद भी कई विवादों को आसान तरीके से सुलझा सकता है।
किरायेदारी कानून का मकसद दोनों पक्षों के हितों की रक्षा करना है। मकान मालिक को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि अत्यधिक किराया बढ़ाने से किराएदार को परेशानी होती है, जो अंततः दोनों के लिए नुकसानदेह होता है। वहीं, किराएदार को भी समय पर किराया देना चाहिए ताकि कोई झंझट न हो। नियमों को समझकर और सही जानकारी लेकर किराएदार अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं और मकान मालिक भी उचित तरीके से किराया बढ़ा सकते हैं।
Disclaimer
यह लेख सामान्य जानकारी के लिए है और इसमें दी गई जानकारी अलग-अलग राज्यों के नियमों पर आधारित है। किराए से जुड़ी विवादों में विशेषज्ञ सलाह लेना आवश्यक होता है क्योंकि कानून में समय-समय पर बदलाव हो सकते हैं। किसी भी कानूनी निर्णय से पहले स्थानीय नियमों और कानून की जांच जरूर करें।